सामान्यतया, 'राजस्थानी' भाषा इस राज्य के नाम के कारण पड़ा है। कभी-कभी 'राजस्थानी' इसकी मुख्य बोली के नाम पर भी पुकारा जाता है (सामान्य रुप से लोगों का यह मानना है कि 'राजस्थानी' एक भाषा है व अन्य सब विविधता उसकी बोलियाँ हैं) या जो क्षेत्र बोलने के ढ़ंग का प्रयोग करते हैं, उदाहरण के लिए, मारवाड़ी, मेरवाड़ी आदि। राजस्थानी न तो कोई भाषा है जो कि किसी समूह के लोगों के द्वारा बोली जाती हो न ही विभिन्न बोलियों का एक संपीड़न है।
भाषा-विज्ञान के आधार पर इसे इंडो-आर्यन के रुप में विभक्त किया जा सकता है। 'मेवाड़ी' वह भाषा है जो कि राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में बोली जाती है। यह नाम इस क्षेत्र के नाम के कारण लिया गया है। राजस्थान की द्वितीय व्यापक भाषा 'मेवाड़ी' है व यह राजस्थानी संस्कृति में एक महत्त्वपूर्ण भाग अदा करती है। 'मेवाड़ी' भाषा को 'मारवाड़ी' की तुलना में एक पृथक भाषा के रुप में वर्णित किया गया है।
अनेक राजकीय व गैर-राजकीय शोध संस्थान यहाँ पर देखे जा सकते हैं। साथ ही साथ मेवाड़ी में अनेक कवि व लेखक और पर्याप्त मात्रा में साहित्य की उपलब्धता देखी जा सकती है।